
पटना: बिहार में चुनावी माहौल गर्म है और इसी बीच राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी और मंत्री अशोक चौधरी ने दावा किया कि उनके दामाद को आरएसएस कोटे से एक आयोग में नियुक्त किया गया है। इस बयान ने राजद नेता तेजस्वी यादव की तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया।
सीनियर जेडीयू नेता चौधरी ने अपने दामाद सयान कुनाल की बिहार राज्य धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड में सदस्य के रूप में नियुक्ति की रक्षा करते हुए कहा कि यह आरएसएस कोटे से हुआ। तेजस्वी यादव ने तुरंत इस पर पलटवार करते हुए कहा कि “नीतीश कुमार की कमान आरएसएस-बीजेपी के हाथों में है।” उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश सरकार आरएसएस के नीति और निर्णयों पर चल रही है, और अब मुख्यमंत्री कार्यालय में भी आरएसएस कोटे से अधिकारियों को रखा जा रहा है।
तेजस्वी ने ‘एक्स’ पर लिखा कि, “65 प्रतिशत आरक्षण को बाधित करना, दलितों, ओबीसी और ईबीसी के अधिकारों से वंचित करना और प्रशासन में वंचित वर्ग के अधिकारियों को हाशिए पर डालना सब कुछ बिहार में आरएसएस द्वारा किया जा रहा है। मुख्यमंत्री तो अवचेतन हैं।” तेजस्वी ने नीतीश के करीबी सहयोगियों पर बेरोजगारी और प्रशासनिक चुनौतियों को लेकर भी कटाक्ष किया।
तेजस्वी ने बढ़ते भ्रष्टाचार और नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी को लेकर सवाल उठाए, और कहा कि “भुंजा पार्टी” नीतीश के राजनीतिक दल का संदर्भ है, जिसके तहत ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्य सरकारी पदों पर नियुक्त किए जा रहे हैं। यहाँ तक कि पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुनाल, जो सयान के पिता हैं, खुद भी धार्मिक ट्रस्ट के प्रमुख रह चुके हैं।
तेजस्वी ने नीतीश पर यह भी आरोप लगाया कि उनके करीबी सहयोगी निश्चांत की राजनीति में एंट्री में अड़ंगा डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि “नीतीश की भुंजा पार्टी के लोग अपने बच्चों और करीबी रिश्तेदारों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करने का पूरी तरह से लाभ उठा रहे हैं।”
हालांकि, जेडीयू के बैनिपुर से विधायक विनय कुमार चौधरी ने कहा कि वह जल्द ही पार्टी की विधान मंडल में एक प्रस्ताव लाने वाले हैं, जिसमें निश्चांत से राजनीति में प्रवेश करने का अनुरोध किया जाएगा।
यह मामला अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। क्या नीतीश कुमार अपनी सरकार की नीतियों को बदल पाएंगे या फिर इसी प्रकार के विवादों में उलझे रहेंगे; यह देखना बाकी है। बिहार की राजनीति में चल रही यह हलचल निश्चित तौर पर आगे और विवादों को जन्म देगी।
राजद और जेडीयू के बीच यह टकराव न केवल दोनों दलों के लिए बल्कि बिहार की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। दोनों नेताओं के तर्क और आरोप-प्रत्यारोप यह दर्शाते हैं कि चुनावी मौसम में आरोपों का यह खेल कितना तीव्र और दिलचस्प होगा।