
source : Maruti Suzuki, Hyundai
नई दिल्ली से एक बड़ी घोषणा आई है कि 22 सितंबर से ऑटोमोबाइल पर लगने वाला Compensation Cess पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। फिलहाल वाहनों पर 28 प्रतिशत GST लगता है, जो सबसे ऊंचा slab है, और इसके ऊपर 1 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक का cess लगाया जाता है। वाहन के प्रकार के आधार पर यह cess बदलता है।
ऑटो उद्योग के अनुमान के अनुसार, कंपनियों की किताबों में लगभग 2,500 करोड़ रुपये का Compensation Cess जमा है। इस राशि का उपयोग अब संभव नहीं होगा और नए GST दरें लागू होने के बाद यह राशि यहीं अटकी रह जाएगी। NDTV Profit GST Conclave 2025 में अधिकारियों ने इस पर विस्तार से जानकारी दी।
अतीत में भी जब ऐसे cess खत्म किए गए थे, तो उनका इस्तेमाल कंपनियों द्वारा नहीं हो पाया। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि जब levy ही खत्म हो जाती है तो क्रेडिट का उपयोग नहीं किया जा सकता। यही स्थिति अब ऑटोमोबाइल क्षेत्र के साथ भी होने जा रही है।
CBIC प्रमुख ने कहा कि यह स्थिति केवल ऑटोमोबाइल तक सीमित नहीं है। इसी तरह की स्थिति एरेटेड वाटर और कोयला जैसे क्षेत्रों में भी देखी गई थी। जहां भी cess बंद होता है, वहां जमा राशि का उपयोग करना संभव नहीं होता।
अब कुल कर भार की गणना इंजन क्षमता और गाड़ी की लंबाई पर निर्भर होगी। छोटे पेट्रोल वाहनों पर यह 29 प्रतिशत तक रहेगा, जबकि SUVs पर यह 50 प्रतिशत तक हो सकता है। यह बड़ा बदलाव उपभोक्ताओं और कंपनियों दोनों को प्रभावित करेगा।
22 सितंबर से पेट्रोल और डीजल कारों के लिए नई दरें लागू होंगी। 1,200 सीसी तक की पेट्रोल और 1,500 सीसी तक की डीजल कारों पर केवल 18 प्रतिशत GST लगेगा। वहीं, इससे ऊपर की गाड़ियों पर अब 40 प्रतिशत तक कर लगाया जाएगा।
ऑटोमोबाइल कंपनियों ने इस बदलाव पर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं। उनका कहना है कि जमा हुआ 2,500 करोड़ रुपये का cess अगर एडजस्ट करने की अनुमति नहीं दी गई, तो इसे अकाउंटिंग बुक्स से रिवर्स करना पड़ेगा। इससे कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है।
कंपनियों ने सरकार से मांग की है कि इस राशि को या तो उनकी टैक्स देनदारी में एडजस्ट किया जाए या फिर इसे रिफंड के रूप में लौटाया जाए। फिलहाल सरकार की ओर से इस पर कोई विशेष आश्वासन नहीं दिया गया है।
Compensation Cess लगाने का कारण भी सरकार ने साफ किया। GST लागू होने के शुरुआती पांच वर्षों तक राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई करने के लिए यह लगाया गया था। इस वजह से राज्यों को स्थिर आय सुनिश्चित की जा सकी।
हालांकि, कोविड महामारी के दौरान जब राजस्व में कमी आई, तो इस cess की अवधि बढ़ा दी गई। इसे केंद्र सरकार द्वारा लिए गए 2.69 लाख करोड़ रुपये के ऋण को चुकाने के लिए भी बढ़ाया गया। इस प्रकार, cess का इस्तेमाल केवल राज्यों की भरपाई तक सीमित नहीं रहा।
उद्योग जगत का मानना है कि इस बदलाव का असर वाहनों की कीमतों और बिक्री पर भी पड़ेगा। उपभोक्ता वर्ग छोटे इंजन वाली कारों की ओर रुख कर सकता है क्योंकि इन पर कर भार कम हो गया है। SUVs और बड़ी गाड़ियों पर टैक्स दरें अभी भी ऊंची बनी रहेंगी।
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे ऑटोमोबाइल सेक्टर में नए संतुलन की स्थिति पैदा होगी। कंपनियों को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी और उपभोक्ताओं की मांग के अनुसार नए मॉडल पेश करने होंगे।
इस फैसले के बाद बाजार में प्रतिस्पर्धा और भी तेज हो सकती है। खासतौर पर छोटे वाहनों की कैटेगरी में कंपनियां नए विकल्प देने पर जोर दे सकती हैं।
कुल मिलाकर, Compensation Cess का खत्म होना सरकार के लिए एक नीतिगत निर्णय है। इससे जहां उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिलेगी, वहीं कंपनियों के सामने वित्तीय चुनौतियां भी खड़ी हो सकती हैं। आने वाले महीनों में इसका असर बिक्री और उद्योग की दिशा दोनों पर दिखाई देगा।