जिवितपुत्रिका व्रत कथा (Jivitputrika Vrat Katha)

Jivitputrika vrat katha
जिवितपुत्रिका व्रत का महत्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में देखा जाता है। इसे जीवत्पुत्रिका व्रत, जीवित्पुत्रिका, जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत माताएं अपने संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं।
जीमूतवाहन की कथा
पुराने समय की बात है, एक गंधर्व राजकुमार थे, जिनका नाम जीमूतवाहन था। वे बहुत दयालु और परोपकारी स्वभाव के थे। एक बार, वे अपने राज्य का सुख-चैन छोड़कर जंगल में तपस्या करने चले गए।
एक दिन, जब वे घूम रहे थे, उन्होंने देखा कि एक वृद्धा रो रही है। जीमूतवाहन ने उससे रोने का कारण पूछा। वृद्धा ने बताया कि वह एक नागिन है और उसका इकलौता पुत्र है। नागों और गरुड़ के बीच एक समझौता हुआ है, जिसके अनुसार हर दिन एक नाग गरुड़ को खाने के लिए भेजा जाता है। आज उसके पुत्र की बारी है, और वह उसे गरुड़ के पास भेजने के लिए जा रही है।
यह सुनकर जीमूतवाहन का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने नागिन को सांत्वना दी और कहा कि वह उसके पुत्र की जगह खुद गरुड़ का भोजन बनेंगे। जीमूतवाहन खुद उस शिला पर लेट गए, जहाँ नाग को भेजा जाना था।
गरुड़ जब आया, तो उसने अपनी चोंच से जीमूतवाहन पर प्रहार किया। जीमूतवाहन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह देखकर गरुड़ को आश्चर्य हुआ। उसने जब ध्यान से देखा, तो पाया कि यह कोई नाग नहीं बल्कि एक राजकुमार है।
गरुड़ ने जीमूतवाहन से इसका कारण पूछा। जीमूतवाहन ने पूरी बात बताई। उनकी दयालुता और त्याग की भावना से गरुड़ बहुत प्रभावित हुआ। उसने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया और यह भी वचन दिया कि वह आज के बाद किसी भी नाग को नहीं खाएगा।
यह व्रत जीमूतवाहन के इस त्याग को याद करते हुए मनाया जाता है, क्योंकि उन्होंने एक पुत्र को जीवनदान दिया था।
चिलहोरिन की कथा
एक और कथा के अनुसार, एक औरत थी जिसका नाम चिलहोरिन था। उसके कई पुत्र थे, लेकिन वे सभी जीवित नहीं रहते थे। एक दिन, उसने अपने सभी पुत्रों को बचाने के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करने का निश्चय किया।
उसने यह व्रत पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ किया। व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रों की आयु बढ़ गई और वे सभी स्वस्थ रहे। इसी कारण से इस व्रत को जिउतिया भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है जो पुत्रों को जीवन देता है।
इन दोनों कथाओं का सार यही है कि जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं के असीम प्रेम और त्याग का प्रतीक है, जो वे अपनी संतान के लिए करती हैं।
व्रत की विधि
- इस दिन स्त्रियाँ प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं।
- दिनभर निराहार व्रत किया जाता है, केवल जल का सेवन कर सकती हैं।
- संध्या के समय जिवित्पुत्रिका माता की पूजा की जाती है।
- व्रत कथा सुनने के बाद दीपक जलाकर माता से संतान के जीवन और सुख की कामना की जाती है।
- अगले दिन प्रातः व्रत का पारण कर अन्न-जल ग्रहण किया जाता है।
महत्व
जिवित्पुत्रिका व्रत को अटल विश्वास और गहन श्रद्धा के साथ किया जाता है। लोकमान्यता है कि माता की कृपा से संतान लंबी आयु प्राप्त करती है और हर संकट से उसकी रक्षा होती है। यह व्रत मातृ-भाव और संतान के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
1. व्रत का संकल्प
- प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर पूजा स्थान पर बैठें।
- जल से भरा हुआ कलश रखें और उसके ऊपर नारियल व आम के पत्ते लगाएँ।
- दोनों हाथ जोड़कर माता जिवित्पुत्रिका का आह्वान करते हुए संकल्प लें:
“मैं आज श्रद्धा व विश्वास से जिवित्पुत्रिका व्रत कर रही हूँ, कृपा कर मेरी संतान की रक्षा करें।”
2. पूजन सामग्री
- जल से भरा कलश
- नारियल और आम के पत्ते
- रोली, हल्दी, चावल (अक्षत), दूर्वा
- पुष्प और माला
- दीपक और धूपबत्ती
- मौ seasonal फल और नैवेद्य (अनाज का प्रयोग नहीं होता)
- लाल या पीला वस्त्र (माता के लिए अर्पित करने हेतु)
3. पूजा विधि
- स्थान शुद्धि – पूजा स्थल को साफ कर पवित्र जल छिड़कें।
- कलश स्थापना – कलश को पूजा स्थान पर स्थापित करें और उसके ऊपर नारियल रखें।
- माता का आह्वान – दीपक और धूप जलाकर माता जिवित्पुत्रिका का ध्यान करें।
- अर्घ्य और तिलक – माता को रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।
- कथा वाचन – श्रद्धापूर्वक जिवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनें अथवा पढ़ें।
- नैवेद्य अर्पण – मौ seasonal फल, दूध और जल अर्पित करें।
- आरती – दीपक घुमाकर माता की आरती करें और संतान की रक्षा का आशीर्वाद माँगें।
4. व्रत नियम
- पूरे दिन निराहार व्रत रखा जाता है।
- स्त्रियाँ केवल जल का सेवन करती हैं, अन्न का प्रयोग नहीं होता।
- व्रत के दौरान मन, वचन और आचरण की शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- इस दिन झूठ, क्रोध और अपवित्रता से दूर रहना आवश्यक है।
5. व्रत पारण
- अगले दिन प्रातः स्नान करने के बाद माता को पुनः दीप-धूप अर्पित करें।
- परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
6. विशेष मान्यता
- कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान दीर्घायु और रोगमुक्त रहती है।
- माता का आशीर्वाद संतान को हर संकट से बचाता है।
- यह व्रत मातृत्व के प्रेम और संतान के प्रति निस्वार्थ समर्पण का प्रतीक है।