
भारत का पहला एस्ट्रोनॉमी ऑब्जर्वेटरी एस्ट्रोसैट ने दस साल पूरे कर लिए हैं।
इसे 2015 में आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था।
यह एक साथ एक्स-रे, अल्ट्रावायलेट और ऑप्टिकल स्पेक्ट्रल बैंड में ब्रह्मांड का अवलोकन कर सकता है।
इसरो के अनुसार, कक्षा में स्थापित होने के बाद एस्ट्रोसैट के दो सोलर पैनल स्वचालित रूप से खुल गए।
बेंगलुरु स्थित मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स पूरे मिशन के दौरान उपग्रह का प्रबंधन करता है।
एस्ट्रोसैट के पांच पेलोड द्वारा एकत्र किए गए डेटा को मोक्स ग्राउंड स्टेशन पर भेजा जाता है।
इस डेटा को बेंगलुरु के पास ब्यलालू स्थित इंडियन स्पेस साइंस डेटा सेंटर द्वारा प्रोसेस किया जाता है।
लॉन्च के समय एस्ट्रोसैट का वजन 1,515 किलोग्राम था।
इसने अपने मिशन की शुरुआत एक विशाल लाल तारे के दो दशक पुराने रहस्य को सुलझाकर की।
इसकी उपलब्धियों में लगभग 9 अरब प्रकाश-वर्ष दूर से यूवी फोटॉन का पता लगाना शामिल है।
एस्ट्रोसैट ने आकाशगंगाओं के विलय और ब्लैक होल के घूमने जैसी घटनाएं देखी हैं।
यह ब्रह्मांड के निर्माण से लेकर विनाश तक की पूरी व्यापकता को कैद कर चुका है।
अब 57 देश एस्ट्रोसैट के पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं, जिनमें अमेरिका भी शामिल है।
132 भारतीय विश्वविद्यालयों ने इसके निष्कर्षों का उपयोग किया है।
पांच साल के प्रारंभिक परिचालन सीमा के बावजूद एस्ट्रोसैट भविष्य में काम करने के लिए तैयार है।
यह अपने अनुमानित जीवनकाल से दोगुना समय पार कर चुका है।