
केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने स्पष्ट किया है कि कंपनी अधिनियम, 2013, सिक्किम राज्य में लागू नहीं होता है। यह बयान राज्य के कॉर्पोरेट मामलों में विशिष्ट कानूनी दर्जे की पुष्टि करता है।
मंत्री ने यह स्पष्टीकरण राज्यसभा सांसद डी टी लेपचा के एक प्रश्न के जवाब में दिया। सांसद ने सिक्किम के हितधारकों द्वारा कंपनी पंजीकरण और अनुपालन प्रक्रियाओं में आने वाली कठिनाइयों का जिक्र किया था।
इन कठिनाइयों में एमसीए21 पोर्टल पर स्टैच्यूटरी रिटर्न दाखिल करने में समस्या शामिल थी। कनेक्टिविटी मुद्दों और राज्य में सुविधा केंद्रों के अभाव को इन समस्याओं का मुख्य कारण बताया गया।
सांसद लेपचा ने केंद्र सरकार से एक विशेष प्रश्न भी पूछा था। उन्होंने सिक्किम में स्टार्टअप, एमएसएमई और कॉर्पोरेट संस्थाओं की मदद के लिए एक समर्पित एमसीए सुविधा केंद्र स्थापित करने के प्रस्ताव के बारे में जानना चाहा।
उन्होंने यह भी पूछा कि क्या ऐसी संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए कोई विशेष छूट या सहायता देने की योजना है। मंत्री हर्ष मल्होत्रा के जवाब ने इन सभी सवालों की जमीन ही हिला दी।
मंत्री ने जवाब दिया कि चूंकि कंपनी अधिनियम, 2013, सिक्किम राज्य में लागू ही नहीं है, इसलिए सांसद महोदय के प्रश्न ही नहीं उठते। यह जवाब राज्य की विशेष संवैधानिक स्थिति को रेखांकित करता है।
इस घटनाक्रम से पहले संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन एक और महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुआ। लोकसभा ने मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर दूसरा संशोधन विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी।
इस विधेयक को राज्यसभा ने एक संक्षिप्त चर्चा के बाद लोकसभा को वापस भेज दिया था। विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने विशेष गहन निर्वाचन नामावली संशोधन पर तत्काल चर्चा की मांग की।
इस मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों ने राज्यसभा से वॉकआउट भी किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चर्चा का जवाब देते हुए सरकार के रुख को स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा कि सरकार व्यवसाय में सुगमता लाने और अनावश्यक विवादों से बचने के लिए प्रतिबद्ध है। यह बयान सरकार की नीतिगत दिशा को दर्शाता है।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने इस विधेयक को राज्यसभा में विचारार्थ रखा था। विधेयक का उद्देश्य मणिपुर राज्य में जीएसटी व्यवस्था में संशोधन करना है।
सिक्किम के संदर्भ में मंत्री के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य कॉर्पोरेट नियमों के मामले में एक अलग दायरे में काम करता है। यह स्थिति राज्य के विलय के समय हुए समझौतों से उपजी है।
इसका सीधा असर वहां व्यापार करने वाले उद्यमियों और कंपनियों पर पड़ता है। उन्हें केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के पोर्टल और नियमों का पालन नहीं करना पड़ता।
हालांकि, इससे स्थानीय स्टार्टअप और व्यवसायों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। राज्य में विशेष सुविधा केंद्रों के अभाव में तकनीकी और प्रशासनिक सहायता सीमित हो जाती है।
सरकार का यह स्पष्टीकरण भविष्य में होने वाली किसी भी गलतफहमी को दूर करने में मददगार साबित होगा। यह कॉर्पोरेट जगत के लिए कानूनी निश्चितता लाता है।
संसद में हुई यह चर्चा देश की विविध कानूनी व्यवस्थाओं को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है। यह भारतीय संविधान की लचीली प्रकृति को भी दर्शाता है।










