
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना किया है। पार्टी महज चार से पांच सीटों पर ही आगे चल रही है, जबकि 2020 के चुनाव में उसे 19 सीटें मिली थीं।
यह नतीजा पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है।
विधानसभा की 243 सीटों में से 200 से अधिक सीटों पर राजग की बढ़त देखी जा रही है। कांग्रेस अब राज्य की राजनीति में सीमांत भूमिका में सिमट गई लगती है।
पार्टी के कई नेता निजी तौर पर मान रहे हैं कि संगठनात्मक कमजोरी इस हार की मुख्य वजह रही। उनका कहना है कि जमीनी स्तर पर पार्टी का ढांचा कमजोर पड़ गया था।
कांग्रेस का चुनावी संदेश और अभियान बिहार के मतदाताओं तक नहीं पहुंच पाया। मतदाता विकास, शासन और महिला कल्याण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे थे।
राजग ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं और व्यापक जातीय गठजोड़ का फायदा उठाया। इसने कांग्रेस को अलग-थलग कर दिया और उसकी स्थिति कमजोर हो गई।
बिहार में कांग्रेस की जमीनी मशीनरी लगभग निष्क्रिय सी हो गई थी। हालांकि पार्टी ने बड़े स्तर पर प्रचार अभियान चलाया, लेकिन यह कई महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों में नहीं बदल पाया।
गठबंधन की राजनीति में भी कांग्रेस खुद को एक विश्वसनीय शक्ति के रूप में स्थापित नहीं कर पाई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ सीटों पर तो गठबंधन साथियों ने उसे प्रचार के लिए आमंत्रित तक नहीं किया।
बिहार में इस हार के बाद कांग्रेस के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी को अब एक ऐसे राज्य में फिर से अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी जहां उसकी गति पहले ही कमजोर पड़ चुकी है।
कांग्रेस को राष्ट्रीय नारों पर निर्भरता छोड़कर क्षेत्रीय रणनीति तैयार करनी होगी। उसे जमीनी स्तर पर अपनी ताकत बढ़ानी होगी और मतदाताओं का विश्वास फिर से हासिल करना होगा।
बिहार के चुनावी नतीजे से एक बात साफ हो गई है कि केवल विरासत पर भरोसा करके कोई पार्टी जीत हासिल नहीं कर सकती। कांग्रेस को जमीनी हकीकत से सीख लेते हुए तत्काल कदम उठाने होंगे।
पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन और पुनर्निर्माण का है। उसे अपनी रणनीति और संगठनात्मक ढांचे में बदलाव लाना होगा।
बिहार की राजनीति में कांग्रेस के लिए अब चुनौतियां और बढ़ गई हैं। आने वाले समय में पार्टी को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ना होगा।










