
हिंदी सिनेमा के महानायक गुरु दत्त ने निर्देशन, निर्माण और अभिनय के जरिए बॉलीवुड को अमर क्लासिक्स दिए। उनकी 100वीं जयंती पर आइए जानते हैं उनकी 10 यादगार फिल्मों के बारे में।
प्यासा (1957) गुरु दत्त का सपनों का प्रोजेक्ट था जिसमें उन्होंने एक निराश कवि की भूमिका निभाई। फिल्म में उनके पिता के असफल साहित्यिक सपनों की झलक भी है। ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या, जाने वो कैसे लोग थे जैसे गीत आज भी अमर हैं। माला सिन्हा, वहीदा रहमान और रहमान ने भी इसमें अभिनय किया।
काग़ज़ के फूल (1959) रिलीज होने पर फ्लॉप हुई थी लेकिन आज क्लासिक का दर्जा पा चुकी है। फिल्म में गुरु दत्त के टूटे विवाह और रचनात्मक असंतुष्टि को देखा जा सकता है। यह भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म थी।
साहब बीबी और ग़ुलाम (1962) में गुरु दत्त ने निर्माता की भूमिका निभाई। मीना कुमारी के सबसे प्रसिद्ध अभिनय वाली इस फिल्म में वहीदा रहमान और रहमान भी थे। यह बंगाल की एक जर्जर जमींदारी व्यवस्था की कहानी है।
आर पार (1954) एक नॉयर-कॉमेडी थी जिसमें गुरु दत्त ने जॉनी वॉकर के साथ अभिनय किया। बाबूजी धीरे चलना और कभी आर कभी पार जैसे गीत आज भी याद किए जाते हैं।
चौदहवीं का चांद (1960) गुरु दत्त की सबसे बड़ी कमर्शियल हिट थी। यह फिल्म उन्होंने केवल प्रोड्यूस की थी और इसमें वहीदा रहमान-रहमान के साथ त्रिकोण प्रेम कथा थी। मोहम्मद रफी का गाया टाइटल ट्रैक अविस्मरणीय है।
बाजी (1951) गुरु दत्त की पहली निर्देशित फिल्म थी जिसमें देव आनंद ने मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म बॉम्बे नॉयर शैली की नींव बनी।
मिस्टर एंड मिसेज 55 (1955) में गुरु दत्त और मधुबाला की जोड़ी ने रोमांटिक कॉमेडी को नया आयाम दिया। लैंगिक भूमिकाओं पर यह फिल्म आज भी प्रासंगिक है।
जाल (1952) गोवा के मछुआरे गांव की कहानी थी जिसमें देव आनंद और गीता बाली ने अभिनय किया। बाज (1953) गुरु दत्त की पहली अभिनय वाली फिल्म थी।
बहारें फिर भी आएंगी (1966) गुरु दत्त की अंतिम फिल्म थी जो उनकी मृत्यु के बाद रिलीज हुई। धर्मेंद्र ने गुरु दत्त की जगह ली थी। 39 साल की उम्र में 10 अक्टूबर 1964 को उनका निधन हो गया था।