
India china Trade
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हुई मुलाकात भारत के लिए व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकती है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत को अमेरिका से टैरिफ और रूस के साथ उसके संबंधों को लेकर दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
भारत, चीन के साथ उर्वरक, दुर्लभ पृथ्वी खनिज, इलेक्ट्रॉनिक्स manufacturing और foreign direct investment जैसे क्षेत्रों में व्यापार के नए अवसर तलाश रहा है। यह तब और भी अहम हो जाता है जब Washington ने भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त राष्ट्रीय सुरक्षा टैरिफ लगाया है, जिससे 27 अगस्त से कुल शुल्क 50 प्रतिशत हो गया है।
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंताओं में से एक उर्वरक आपूर्ति है। इस महीने की शुरुआत में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ इस मुद्दे को उठाया था, जिसके बाद Beijing ने Di-Ammonium Phosphate (DAP) उर्वरकों, दुर्लभ पृथ्वी magnets और tunnel boring machines के निर्यात पर लगे प्रतिबंध हटा लिए थे। शिपमेंट पहले ही शुरू हो चुका है, जिससे भारतीय किसानों और उद्योगों को अस्थायी राहत मिली है।
भारत अपनी लगभग 95 प्रतिशत specialty उर्वरक जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर करता है। लगभग 80 प्रतिशत आयात सीधे चीन से आता है, जबकि अन्य 20 प्रतिशत intermediaries के माध्यम से प्राप्त होता है। आपूर्ति के पहले निलंबन से कीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। सितंबर में अंगूर और केले जैसी फसलों के लिए मांग का मौसम शुरू होने के साथ, नए प्रतिबंधों से उर्वरक की लागत और बढ़ने की संभावना है, जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा।
चीन के उर्वरक निर्यात पर अंकुश लगाने से रबी के मौसम में पहले ही आपूर्ति बाधित हुई थी, जबकि दुर्लभ पृथ्वी पर प्रतिबंधों ने ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों के लिए चिंताएं पैदा की थीं। Tunnel boring machine में देरी से बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भी धीमी हो गई थीं। दुर्लभ पृथ्वी खनिज बातचीत में एक और संवेदनशील क्षेत्र बने हुए हैं। ये खनिज batteries, motors और advanced electronics में उपयोग होने वाले magnets बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इस साल की शुरुआत में चीनी प्रतिबंधों ने bottlenecks पैदा किए थे, जिससे भारत में उत्पादन लाइनों को खतरा था। इन निर्यात नियमों को आसान बनाने में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। चूंकि भारत Washington और Beijing के बीच अपने संबंधों को संतुलित कर रहा है, नवीनतम बातचीत प्रमुख औद्योगिक inputs की सुचारू आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं।
हालांकि, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन आने वाले महीनों में निर्यात प्रतिबंधों को कैसे संभालता है। पिछले कुछ महीनों में, भारत और चीन ने अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जो जून 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़पों के बाद बुरी तरह तनावपूर्ण हो गए थे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ये नई बातचीत भारत-चीन व्यापार संबंधों को नई दिशा कैसे देती है।
यह महत्वपूर्ण है कि भारत इन व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाए और साथ ही अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी सुरक्षित करे। diversification और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना लंबी अवधि में भारत के लिए फायदेमंद साबित होगा, ताकि वह आवश्यक वस्तुओं के लिए किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर न रहे।
दोनों देशों के बीच बेहतर संवाद और सहयोग आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है। विशेष रूप से जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं का सामना कर रही है, तब मजबूत व्यापारिक संबंध दोनों देशों को लाभान्वित कर सकते हैं। यह भारत-चीन व्यापार संबंधों के एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जो चुनौतियों के बावजूद नई संभावनाओं से भरा है।
भारत और चीन के बीच यह संबंध सिर्फ commercial नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से तब जब वैश्विक शक्तियां व्यापार युद्ध और विभिन्न राजनीतिक दबावों से जूझ रही हैं। इन मुलाकातों से भारत को अपनी विदेश नीति और व्यापार रणनीतियों को पुनर्गठित करने का अवसर मिलता है। यह भी देखना होगा कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते और चीन के साथ नए trade अवसर किस तरह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
कुल मिलाकर भारत-चीन व्यापार संबंधों में उर्वरक, दुर्लभ पृथ्वी खनिज और इलेक्ट्रॉनिक्स manufacturing जैसे क्षेत्रों में सहयोग की बहुत गुंजाइश है। यह दोनों देशों के लिए जीत की स्थिति हो सकती है, बशर्ते आपसी trust और पारदर्शिता के साथ काम किया जाए।
इस मुलाकात से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल सकती है, खासकर जब agriculture sector के लिए उर्वरक आपूर्ति सुनिश्चित हो जाती है। इसके अलावा, electronics manufacturing में चीन के साथ सहयोग से ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों को भी बढ़ावा मिल सकता है।
संक्षेप में, यह भारत के लिए एक रणनीतिक मौका है कि वह चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करे, जबकि वह वैश्विक व्यापार परिदृश्य में संतुलन साध रहा है।