
भारत का 2025 महिला वनडे विश्व कप में अभियान एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। टीम को रविवार को होलकर स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ जीत की सख्त जरूरत है। साल 2020 के बाद से भारत ने आईसीसी टूर्नामेंट्स में SENA टीमों के खिलाफ कोई जीत नहीं हासिल की है।
इंग्लैंड ने शुरुआती मोमेंटम के साथ मजबूत प्रदर्शन किया है। भारत अब कोई और गलती बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि इससे सेमीफाइनल की उम्मीदें खत्म हो सकती हैं।
पूर्व भारतीय कप्तान अंजुम चोपड़ा ने आईएएनएस से बातचीत में टीम की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बाकी बचे लीग मैचों और टीम की रणनीति पर अपने विचार साझा किए।
अंजुम कहती हैं कि भारत को फिर से जीत का रास्ता खोजना होगा। पहले दो मैचों में टीम को सफलता मिली थी लेकिन अगले दो मैच हार में बदल गए। हालांकि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार के बाद टीम ने खुद को संभाला और अच्छा क्रिकेट खेला।
उनका मानना है कि भारतीय प्रशंसकों की उम्मीदें ज्यादा हैं। टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन वह और बेहतर कर सकती थी। कई क्षेत्रों में सुधार के कारण ही टीम 330 रनों तक पहुंच पाई।
अब हर मैच बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। कोलंबो में बारिश की संभावना और इंग्लैंड के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए भारत को हर गेम में पूरी ताकत लगानी होगी।
पांच गेंदबाजों की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं। अंजुम मानती हैं कि यह आदर्श रणनीति नहीं है। वह लंबे समय से छह गेंदबाजों की वकालत कर रही हैं।
टीम के पास विकल्पों की कमी एक बड़ी चुनौती है। रेणुका थाकुर की अनुपलब्धता और पूजा वस्त्रकार के बाहर होने से टीम की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
टीम के शीर्ष पांच बल्लेबाजों में से कोई भी गेंदबाजी नहीं करता। यह स्थिति भारतीय टीम के लिए अच्छी नहीं है। हालांकि टीम ने हरलीन देओल, रिचा घोष और जेमिमा रॉड्रिग्स जैसी खिलाड़ियों को मौके दिए हैं।
रिचा घोष का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है। लेकिन प्रतिका रावल जैसी खिलाड़ी के ना गेंदबाजी करने से टीम को नुकसान हो रहा है। टीम ने अपनी बल्लेबाजी को तो सुधार लिया है लेकिन गेंदबाजी अब भी चुनौतीपूर्ण है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक ही प्लेइंग इलेवन को बनाए रखना आत्मविश्वास दिखाने जैसा था। अंजुम मानती हैं कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार के बाद टीम रणनीति बदल सकती थी।
टीम मैनेजमेंट ने सोचा कि बदलाव करने से घबराहट का संकेत जाएगा। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खुद पर भरोसा जताया लेकिन नतीजा फिर हार में ही रहा।
गेंदबाजी विकल्पों की कमी एक बड़ी समस्या है। रिजर्व में केवल स्पिनर हैं और तेज गेंदबाजों के विकल्प सीमित हैं। अरुंधति रेड्डी या रेणुका सिंह थाकुर ही एकमात्र विकल्प हैं।
ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम के खिलाफ पांच गेंदबाजों से काम चलना मुश्किल है। अगर एक भी गेंदबाज फेल हो जाता है तो टीम मुश्किल में पड़ जाती है। ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाजी लाइनअप बहुत मजबूत है और उन्हें आउट करने के लिए ज्यादा गेंदबाजों की जरूरत होती है।
बल्लेबाजी में समस्याएं भी सामने आई हैं। डॉट बॉल्स का प्रतिशत ज्यादा है और विकेट गिरने का सिलसिला जारी है। अंजुम का मानना है कि स्ट्राइक रोटेशन में सुधार की जरूरत है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत 330 रन बना सका था लेकिन 20-25 रन और बनाए जा सकते थे। बाउंड्री के बाद डॉट बॉल्स खेलना और रनिंग between the wickets में कमजोरी ने टीम को पीछे छोड़ दिया।
कुछ खिलाड़ियों ने अनावश्यक रिस्क लिए। रिचा घोष ने ऐसी स्थिति में छक्का मारने की कोशिश की जब वह बाउंड्री क्लियर नहीं कर पा रही थीं। स्नेह राना जैसी खिलाड़ी उस समय बेहतर विकल्प हो सकती थीं।
क्रांति गौड़ जैसी युवा खिलाड़ी के लिए पहले विश्व कप में नर्वसनेस स्वाभाविक है। लेकिन भारत के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों से इन स्थितियों के लिए बेहतर तैयारी की उम्मीद की जाती है।
विश्व कप के बीच में मिले एक सप्ताह के ब्रेक को अंजुम सकारात्मक मानती हैं। यह ब्रेक न सिर्फ खिलाड़ियों बल्कि सपोर्ट स्टाफ के लिए भी फायदेमंद है। इससे टीम को रीथिंक करने और नई रणनीति बनाने का मौका मिलेगा।
हालांकि लंबे ब्रेक के दौरान भी टीम टूर्नामेंट के बारे में सोचती रहती है। टेलीविजन पर लगातार मैच देखने से टूर्नामेंट का दबाव बना रहता है।
अंजुम को टीम के लिए खेद है क्योंकि खिलाड़ियों की अनुपलब्धता के कारण वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। उपलब्ध खिलाड़ियों में से यही सबसे अच्छा समूह है और कोई बेहतर विकल्प नहीं छोड़ा गया है।
स्पिनरों पर ज्यादा निर्भरता और तेज गेंदबाजों की कमी टीम की मुख्य समस्याएं हैं। घरेलू मैदानों पर हार ज्यादा चुभती है और टीम को इससे सबक लेना चाहिए।
मिड-टूर्नामेंट एक्सपेरिमेंट के बारे में अंजुम कहती हैं कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि टीम के पास क्या विकल्प हैं। उनके शब्दों में यह एक्सपेरिमेंट नहीं बल्कि ऑप्शन बी होना चाहिए।
टीम के पास रोटेशन का लक्जरी नहीं है। अगर सभी खिलाड़ी फिट और मैच रेडी होते तो शायद दूसरे मैच में ही बदलाव किए जा सकते थे। सीमित विकल्पों के साथ टीम को ही अपनी रणनीति तय करनी होगी।