
भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना चीन के सस्ते उत्पादों की वजह से चुनौतियों का सामना कर रही है। वर्तमान में, भारत में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश लिथियम आयन बैटरियां चीन से आयात की जाती हैं, जहां कंपनियां CATL, BYD और EVE जैसी कंपनियों का दबदबा है। बाकी बैटरियां दक्षिण कोरिया (LG, Samsung) और जापान (Panasonic) से आती हैं।
केंद्र सरकार और निजी कंपनियां इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रही हैं। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक भारत में 100GWh लिथियम आयन बैटरियों का घरेलू उत्पादन हो। CareEdge रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, FY24 में 15GWh की मांग FY30 तक 127GWh तक पहुंचने का अनुमान है।
लेकिन चीन से आयातित सस्ती बैटरियों के कारण भारतीय निर्माताओं को सिर दर्द हो रहा है। एक्साइड इंडस्ट्रीज के MD और CEO अविक रॉय ने हाल ही में कहा कि अगर सरकार स्थानीय निर्माताओं को प्रोत्साहन नहीं देगी, तो यह उद्योग भारत में कभी नहीं पनप पाएगा।
अमरा राजा जैसी कंपनियां भी चीन के दामों के साथ प्रतिस्पर्धा करने को लेकर चिंतित हैं। कंपनी ने हैदराबाद के पास एक लिथियम आयन बैटरी फैक्ट्री में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है, जिसके FY27 तक चालू होने की उम्मीद है।
बैंगलोर के पास अपनी गीगाफैक्ट्री बना रही एक्साइड इंडस्ट्रीज भी इसी वित्तीय वर्ष में लिथियम आयन सेल्स का उत्पादन शुरू करने की योजना बना रही है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओला इलेक्ट्रिक, टाटा की अग्रतास और रजत एक्सपोर्ट्स जैसी कंपनियां भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
चीन में बैटरी सेल्स की अधिक उत्पादन क्षमता ने भाव पर दबाव बनाया हुआ है। एलारा कैपिटल के जय कले ने एक रिपोर्ट में बताया कि चीन में बैटरी की कीमतें अमेरिका और यूरोप की तुलना में 10-20% कम हैं, और यह अंतर बढ़ सकता है।
EV बैटरियों में दो तरह की केमिस्ट्री प्रमुख हैं: लिथियम आयरन फॉस्फेट (LFP) और निकल मैंगनीज कोबाल्ट (NMC)। LFP बैटरियों की कीमतें कुछ मामलों में $50 प्रति किलोवाट घंटे से भी नीचे चली गई हैं, जबकि NMC बैटरियों के भाव $60 kWh के आसपास बने हुए हैं।
चीन दुनिया के 80% लिथियम आयन बैटरी बाजार पर कब्जा जमाए हुए है। इसके अलावा, चीन लिथियम माइनिंग और प्रोसेसिंग में भी दुनिया में अग्रणी है, जिससे उसे कच्चे माल के आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। वहीं, भारत को अपनी जरूरत का सारा लिथियम आयात करना पड़ता है। FY24 में भारत ने लगभग $3 बिलियन का लिथियम आयात किया, जिसमें से 75% से अधिक चीन से आया।
नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट के हर्षवर्धन शर्मा का मानना है कि भारतीय कंपनियों को चीन के साथ मूल्य प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ना चाहिए। उनका कहना है कि टिकाऊ बैटरी उत्पाद बनाने पर ध्यान देना होगा, जो अत्यधिक कम कीमतों पर संभव नहीं है।
बैटरी मटीरियल निर्माता एप्सिलॉन एडवांस्ड मटीरियल के MD विक्रम हांडा का कहना है कि चीन की कम कीमतों और अधिक उत्पादन क्षमता को देखते हुए EV बैटरी में निवेश का फैसला मुश्किल है। उनके मुताबिक, अमेरिका की तरह भारत को भी इस तकनीक में घरेलू क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा।
केंद्र सरकार ने 2021 में 50GWh क्षमता निर्माण के लिए ₹18,100 करोड़ का उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की थी। लेकिन अब तक ओला इलेक्ट्रिक, रिलायंस इंडस्ट्रीज और रजत एक्सपोर्ट्स जैसी चयनित कंपनियों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है, क्योंकि वे कच्चे माल की आपूर्ति जैसी चुनौतियों के कारण अपने उत्पादन लक्ष्यों से पीछे चल रही हैं।
हांडा के मुताबिक, भारत में प्रति किलोवाट घंटे $12-13 का सब्सिडी सपोर्ट अमेरिका ($45 प्रति किलोवाट घंटे) की तुलना में काफी कम है।
चीन पर निर्भरता का जोखिम उस समय सामने आया है जब ऑटोमोबाइल उद्योग को दुर्लभ मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंधों की चिंता सता रही है। चीन ने 4 अप्रैल को नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिसके तहत कंपनियों को यह प्रमाण देना होगा कि इनका इस्तेमाल रक्षा अनुप्रयोगों के लिए नहीं किया जाएगा।
हालांकि, भारतीय बैटरी निर्माताओं को लिथियम आयात पर अभी कोई प्रतिबंध नहीं झेलना पड़ रहा, लेकिन भविष्य में ऐसी संभावनाओं को देखते हुए घरेलू क्षमता बढ़ाने की जरूरत और भी अहम हो गई है।