
सप्ताह भर चलने वाला अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव बुधवार को समाप्त हो गया। इस अवसर पर भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा और लंका दहन का आयोजन किया गया।
कुल्लू दशहरा में शामिल होने वाली 260 से अधिक देवी-देवता अपने-अपने मंदिरों को लौट गए। उन्होंने अगले वर्ष फिर मिलने का वादा किया।
उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने उत्सव के समापन समारोह में घोषणा की कि कुल्लू जिले में पेयजल सुविधाओं को मजबूत करने के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इससे लोगों को स्वच्छ पेयजल की समस्या नहीं होगी।
अग्निहोत्री ने कहा कि कुल्लू दशहरा देव संस्कृति, आस्था, एकता और लोक संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। यह न केवल हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा त्योहार है बल्कि यह राज्य की पहचान विश्व स्तर पर स्थापित करता है।
उन्होंने दशहरा उत्सव में भाग लेने वाले संगीतकारों के मानदेय में 10 प्रतिशत की वृद्धि की भी घोषणा की।
राज्य सरकार देव संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के साथ-साथ पर्यटन के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इससे यह परंपराएं नई पीढ़ी तक पहुंचेंगी और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
इससे पहले उपमुख्यमंत्री ने कुल्लू कार्निवल का शुभारंभ किया और विभागीय प्रदर्शनियों का निरीक्षण किया। कुल्लू शहर के धालपुर मैदान में मनाए जाने वाले इस सात दिवसीय उत्सव में लाखों लोग शामिल होते हैं।
यह उत्सव स्थानीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। यह आगंतुकों को आकर्षित करता है और स्थानीय हस्तशिल्प और कारीगरों को बढ़ावा देता है।
इस उत्सव का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है। स्थानीय राजा जगत सिंह ने प्रायश्चित के रूप में रघुनाथ की मूर्ति को अपने सिंहासन पर स्थापित किया था।
इसके बाद भगवान रघुनाथ को घाटी का शासक देवता घोषित किया गया। यह परंपरा आज भी जीवंत है और लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
कुल्लू दशहरा न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतिनिधित्व करता है। यहां की रंगीन झांकियां और पारंपरिक नृत्य दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
हर साल यह उत्सव पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनता है। स्थानीय लोग इस अवसर पर अपने उत्पादों की बिक्री कर आय अर्जित करते हैं।
सरकार द्वारा की गई घोषणाएं क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। बेहतर जल सुविधाओं से जनजीवन सुगम होगा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
संगीतकारों के मानदेय में वृद्धि कलाकारों के हौसले को बढ़ाएगी। इससे स्थानीय कला और संस्कृति का संरक्षण भी सुनिश्चित होगा।
कुल्लू दशहरा की विशेषता यह है कि इसमें पूरे क्षेत्र की देवी-देवता शामिल होते हैं। यह एकता और सामुदायिक भावना का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।