
क्रिसिल की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव का भारतीय कंपनियों पर निकट भविष्य में सीमित प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। कंपनियों की कम कैपेक्स इंटेंसिटी और मजबूत बैलेंस शीट इस संकट से निपटने में मददगार साबित हो रही हैं। हालांकि, अगर यह तनाव लंबे समय तक बना रहता है तो तेल की कीमतों में वृद्धि और सप्लाई चेन में व्यवधान से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक मिडल ईस्ट की अनिश्चितताओं का भारतीय कंपनियों के वैश्विक व्यापार पर कोई खास असर नहीं दिखा है। लेकिन अगर स्थिति बिगड़ती है तो बासमती चावल, उर्वरक और कटे-पॉलिश किए हीरे जैसे सेक्टर्स पर इसका ज्यादा असर पड़ सकता है।
मिडल ईस्ट में चल रही अनिश्चितताओं ने ग्लोबल क्रूड ऑयल मार्केट को प्रभावित किया है। ब्रेंट क्रूड की कीमतें पिछले एक हफ्ते से 73-76 डॉलर प्रति बैरल के बीच झूल रही हैं, जबकि अप्रैल-मई 2025 में यह औसतन 65 डॉलर प्रति बैरल थी। अगर क्रूड की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं तो भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बन सकता है।
इसके अलावा, लंबे समय तक चलने वाली अनिश्चितताएं एयर/सी फ्रेट कॉस्ट और इंश्योरेंस प्रीमियम को बढ़ा सकती हैं, जिसका सीधा असर इंपोर्ट-एक्सपोर्ट से जुड़े सेक्टर्स पर पड़ेगा।
भारत का इजराइल और ईरान के साथ सीधा व्यापार कुल व्यापार का 1 प्रतिशत से भी कम है। भारत की ईरान को प्रमुख एक्सपोर्ट बासमती चावल है, जबकि इजराइल के साथ व्यापार ज्यादा विविधतापूर्ण है जिसमें उर्वरक, हीरे और इलेक्ट्रिकल उपकरण शामिल हैं।
ईरान और इजराइल, भारत के बासमती चावल निर्यात का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा हैं। लेकिन चूंकि बासमती चावल एक बुनियादी जरूरत है, इसलिए चल रहे तनाव से इसकी मांग पर ज्यादा असर नहीं पड़ने की संभावना है।
भारत की मिडल ईस्ट के अलावा अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में निर्यात करने की क्षमता मांग के जोखिम को कम करती है। लेकिन अगर संकट लंबा खिंचता है तो इन क्षेत्रों में भुगतान में देरी हो सकती है, जिससे वर्किंग कैपिटल साइकिल लंबा हो जाएगा।
हीरा पॉलिशिंग से जुड़ी घरेलू कंपनियों के लिए इजराइल मुख्य रूप से एक ट्रेडिंग हब है, जहां पिछले वित्त वर्ष में कुल हीरा निर्यात का लगभग 4 प्रतिशत हिस्सा गया।
इसके अलावा, इजराइल से आयात होने वाले रफ डायमंड्स का हिस्सा कुल आयात का लगभग 2 प्रतिशत है। पॉलिशर्स के पास बेल्जियम और यूएई जैसे वैकल्पिक ट्रेडिंग हब भी हैं, जिनके अंतिम ग्राहक अमेरिका और यूरोप में हैं। यह कंपनियों को सेक्टर पर पड़ने वाले किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को संभालने में मदद करेगा।
क्रूड ऑयल की कीमतों में वर्तमान स्तर से और वृद्धि का प्रभाव विभिन्न सेक्टर्स पर अलग-अलग तरीके से पड़ेगा। मुनाफे पर असर इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियां बढ़ती लागत को ग्राहकों तक कितना पास ऑन कर पाती हैं।
तेल की कीमतों में वृद्धि अपस्ट्रीम ऑयल कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होगी क्योंकि इससे उनकी आय बढ़ेगी, जबकि उनकी लागत तय होती है।
डाउनस्ट्रीम ऑयल रिफाइनर कंपनियों के लिए ऑपरेटिंग मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है क्योंकि उन्हें रिटेल ईंधन की कीमतों में वृद्धि करके इनपुट कॉस्ट को पूरी तरह से पास ऑन करने की सीमित क्षमता होती है।
स्पेशल्टी केमिकल कंपनियों की ऑपरेटिंग लागत का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा क्रूड से जुड़ा होता है। यहां इनपुट कॉस्ट में भारी वृद्धि को पास ऑन करने की क्षमता सीमित होगी क्योंकि यह सेक्टर अभी पिछले दो वित्तीय वर्षों से चली आ रही मांग में कमी, चीन से डंपिंग और सप्लायर्स द्वारा इन्वेंट्री करेक्शन के बाद सामान्य स्थिति में लौटना शुरू ही किया है।
इसी तरह पेंट सेक्टर के मार्जिन पर भी दबाव बन सकता है क्योंकि इसकी उत्पादन लागत का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा क्रूड से जुड़ा होता है। इस सेक्टर में प्रतिस्पर्धा के कारण बढ़ती इनपुट कीमतों को ग्राहकों तक पास ऑन करने की क्षमता सीमित होती है, जिससे मुनाफे पर कुछ असर पड़ सकता है।
एविएशन कंपनियों के लिए ईंधन की लागत कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का 35-40 प्रतिशत होती है। इसके अलावा एयरस्पेस बंद होने या रूट डाइवर्जन के कारण यात्रा के समय में वृद्धि से भी ईंधन की लागत बढ़ेगी।
टायर सेक्टर की ऑपरेटिंग लागत का लगभग आधा हिस्सा क्रूड से जुड़ा होता है। रेवेन्यू का 60-65 प्रतिशत हिस्सा रिप्लेसमेंट मार्केट से आता है और बाकी ओईएम सेल्स से। टायर निर्माता रिप्लेसमेंट मार्केट में इनपुट कीमतों में वृद्धि को आसानी से पास ऑन कर देते हैं, लेकिन ओईएम सेल्स में यह प्रक्रिया धीमी होती है, जिससे इंटरिम में मार्जिन पर असर पड़ सकता है।
फ्लेक्सिबल पैकेजिंग और सिंथेटिक टेक्सटाइल फर्मों के लिए उत्पादन लागत का 70-80 प्रतिशत हिस्सा क्रूड से जुड़ा होता है, लेकिन मांग और आपूर्ति में सुधार और कंपनियों की लागत को ग्राहकों तक पास ऑन करने की क्षमता के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि का असर मध्यम रह सकता है।