
नासा और इसरो ने बुधवार को एक ऐतिहासिक मिशन पर साथ काम करते हुए NISAR नामक सैटेलाइट लॉन्च किया। यह धरती की सतह में होने वाले बेहद सूक्ष्म बदलावों को ट्रैक करेगा। 1.3 बिलियन डॉलर के इस मिशन का उद्देश्य बाढ़, भूस्खलन और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को समझने में मदद करना है।
सतीश धवन स्पेस सेंटर से 12:10 GMT पर लॉन्च हुए इस सैटेलाइट को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर इस उपलब्धि पर खुशी जताई।
NISAR धरती के ध्रुवों की परिक्रमा करते हुए अगले तीन साल तक डेटा एकत्र करेगा। यह सैटेलाइट प्रत्येक 12 दिन में दो बार धरती की सतह का विस्तृत मापन करेगा। इसकी मदद से 1 सेंटीमीटर तक के बदलावों को भी नोट किया जा सकेगा। ग्लेशियरों के पिघलने और ध्रुवीय बर्फ की चादरों में होने वाले परिवर्तन इसके प्रमुख अध्ययन विषय होंगे।
नासा की अर्थ साइंस डिवीजन की निदेशक करेन सेंट जरमेन ने कहा कि यह दुनिया का अब तक का सबसे उन्नत रडार सिस्टम है। NISAR दो अलग-अलग फ्रीक्वेंसी वाले रडार का उपयोग करेगा। इसमें नासा द्वारा विकसित L-बैंड और इसरो द्वारा निर्मित S-बैंड रडार शामिल हैं। मौसम की परवाह किए बिना ये रडार धरती की हाई रेजोल्यूशन इमेज कैप्चर कर सकते हैं।
सैटेलाइट से भेजे गए सिग्नल धरती की सतह से टकराकर वापस लौटेंगे और विशाल एंटीना रिफ्लेक्टर द्वारा प्राप्त किए जाएंगे। वैज्ञानिक इन सिग्नल्स की तुलना कर धरती में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करेंगे।
इसरो चेयरमैन वी. नारायणन के अनुसार, यह सैटेलाइट डेटा पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के लिए उपयोगी होगा। नासा के डिप्टी एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर केसी स्वेल्स ने इसे भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रयासों की बड़ी उपलब्धि बताया।
इस प्रोजेक्ट में नासा ने 1.2 बिलियन डॉलर और इसरो ने 91 मिलियन डॉलर का योगदान दिया। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। 2014 में मंगलयान और 2023 में चंद्रयान-3 मिशन इसके उदाहरण हैं। शुभांशु शुक्ल हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने।