नई दिल्ली, 14 जुलाई (एएनआई) – पूर्णिया के स्वतंत्र सांसद पप्पू यादव ने सोमवार को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की आलोचना करते हुए उन्हें ‘धृतराष्ट्र’ कहा। यह टिप्पणी बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के फैसले के बाद आई है। पप्पू यादव ने आयोग पर संविधान का सम्मान न करने और सुप्रीम कोर्ट की सलाह न मानने का आरोप लगाया।
उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन जारी रखने की अनुमति दी है। हालांकि कोर्ट ने आयोग को सलाह दी कि वह आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को मतदाता पहचान के लिए स्वीकार्य दस्तावेजों के रूप में माने।
एएनआई से बातचीत में पप्पू यादव ने कहा, ‘चुनाव आयोग पहले ही धृतराष्ट्र बन चुका है। वे न तो सुप्रीम कोर्ट की सलाह मान रहे हैं और न ही संविधान का सम्मान कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्पष्ट रूप से कहा था कि वे किसी भी स्थिति में यह तय नहीं कर सकते कि कौन भारतीय है और कौन नहीं। संविधान के तहत काम करें और अन्य दस्तावेजों के साथ आधार कार्ड को भी शामिल करें।’
इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद योगेंद्र चंदोलिया ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों के विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने चाहिए।
चंदोलिया ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों को उनके देश वापस भेजा जाना चाहिए और यह प्रक्रिया अन्य राज्यों में भी की जानी चाहिए। एएनआई से बात करते हुए चंदोलिया ने रविवार को कहा, ‘चूंकि चुनाव आयोग ने बिहार में यह काम शुरू कर दिया है, यह अन्य राज्यों में भी जारी रहेगा। अगर नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के लोग हमारे मतदाता हैं, तो स्थानीय निवासियों को मतदान का अधिकार देने का क्या मतलब है? ऐसे मतों को हटाया जाना चाहिए और सिर्फ इतना ही नहीं, इन लोगों को उनके मूल देश वापस भेजा जाना चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमल्या बागची की पीठ ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि वह बिहार में चल रहे मतदाता सूची संशोधन के दौरान आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को पहचान प्रमाण के तौर पर स्वीकार करने पर विचार करे।
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, 1 अगस्त से 30 अगस्त तक उचित जांच के बाद यदि पाया जाता है कि कुछ नाम अवैध हैं, तो उन्हें 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होने वाली अंतिम सूची में शामिल नहीं किया जाएगा।
भारत निर्वाचन आयोग ने कहा कि शनिवार शाम तक बिहार में 80.11 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने फॉर्म जमा कर दिए हैं। आयोग ने यह भी कहा कि वह 25 जुलाई की निर्धारित तिथि से पहले एन्युमरेशन फॉर्म (ईएफ) एकत्र करने का काम पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।