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एसबीआई के एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि आगामी मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक के लिए प्रमुख बेंचमार्क उधार दर में 25 आधार अंकों की कटौती का तर्कसंगत आधार है। इसकी वजह यह है कि अगले वित्तीय वर्ष में भी खुदरा महंगाई नरम बनी रहने की उम्मीद है।
फरवरी से अब तक आरबीआई ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में गिरावट के बीच रेपो दर में 100 आधार अंकों की कमी की है। लगातार तीन बार दरों में कटौती के बाद आरबीआई ने अगस्त में विराम लगा दिया था।
ब्याज दरों का फैसला करने वाली आरबीआई गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक 29 सितंबर को तीन दिनों के लिए निर्धारित है। इस बैठक का निर्णय 1 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के आर्थिक शोध विभाग की रिपोर्ट ‘प्रील्यूड टू एमपीसी मीटिंग’ के मुताबिक सितंबर में दर कटौती के पक्ष में मजबूत तर्क हैं। हालांकि इसके लिए आरबीआई को सावधानीपूर्वक संचार की जरूरत होगी क्योंकि जून के बाद दर कटौती की संभावना कम ही रही है।
रिपोर्ट में कहा गया कि मौद्रिक नीति के लिए केंद्रीय बैंक का संचार एक महत्वपूर्ण उपकरण है। जून की नीति के बाद ऐसे संचार ने यील्ड मजबूत होने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
सितंबर में दरों में कटौती न करके फिर से टाइप 2 त्रुटि करने का कोई मतलब नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 27 में भी नरम बनी रहेगी और जीएसटी में कटौती के बिना यह सितंबर और अक्टूबर में 2 प्रतिशत से नीचे रह सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2026-27 के लिए सीपीआई अब लगभग 4 प्रतिशत या उससे कम पर है। जीएसटी में तर्कसंगत बदलाव के साथ अक्टूबर का सीपीआई 1.1 प्रतिशत के करीब पहुंच सकता है जो 2004 के बाद से सबसे कम स्तर होगा।
एसबीआई अध्ययन में कहा गया कि सितंबर में दर कटौती आरबीआई के लिए सबसे अच्छा संभव विकल्प है। यह कदम आरबीआई को एक दूरदर्शी केंद्रीय बैंक के रूप में भी प्रस्तुत करेगा।
एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा लिखित इस रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि जीएसटी के बड़े पैमाने पर तर्कसंगत बदलाव के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति में 65-75 आधार अंकों की और गिरावट आ सकती है।
2019 का अनुभव भी बताता है कि दरों में तर्कसंगत बदलाव से सामान्य वस्तुओं की दरें 28 प्रतिशत से घटकर 18 प्रतिशत हो गईं थीं। इसके परिणामस्वरूप केवल कुछ महीनों में समग्र मुद्रास्फीति में लगभग 35 आधार अंकों की गिरावट आई थी।
नए सीपीआई सीरीज के साथ सीपीआई में 20-30 आधार अंकों की और कमी की उम्मीद है। ये सभी कारक जीएसटी और आधार संशोधन संकेत देते हैं कि पूरे वित्त वर्ष 26 और 27 के दौरान सीपीआई मुद्रास्फीति मुद्रास्फीति लक्ष्य के निचले सिरे पर बनी रहेगी।
सरकार ने आरबीआई को यह जिम्मेदारी दी है कि वह सीपीआई को 4 प्रतिशत पर सुनिश्चित करे जिसमें दोनों तरफ 2 प्रतिशत का अंतर हो।
मौद्रिक नीति समिति की आगामी बैठक में दर कटौती का निर्णय वित्तीय बाजारों के लिए महत्वपूर्ण होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अर्थव्यवस्था पर इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
निवेशक और उद्योग जगत सितंबर में दर कटौती की संभावना पर नजर गड़ाए हुए हैं। आरबीआई का यह कदम आर्थिक विकास को गति देने में मददगार साबित हो सकता है।
मुद्रास्फीति पर नजर रखते हुए आरबीआई ने पिछले कुछ समय से सतर्क रुख अपनाया हुआ है। हालांकि मौजूदा आर्थिक हालात दर कटौती के पक्ष में मजबूत संकेत दे रहे हैं।
वित्तीय बाजारों में उम्मीद है कि आरबीआई जल्द ही दरों में कटौती की दिशा में कदम बढ़ाएगा। इससे उधार लेने की लागत में कमी आएगी और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।