
नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में पुराने वाहनों पर लगने वाले ईंधन प्रतिबंध से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री और सरकारी राजस्व को बड़ा फायदा होने वाला है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर छोटे व्यवसायों, अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों और मध्यमवर्गीय परिवारों पर पड़ेगा।
1 जुलाई 2025 से दिल्ली में पुराने वाहनों को पेट्रोल पंपों पर ईंधन नहीं मिल पाएगा। इस नई नीति के तहत 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहन और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहन प्रभावित होंगे। फ्यूल स्टेशनों पर लगे ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) कैमरे वाहन डेटाबेस से जुड़े होंगे और नियम का पालन सुनिश्चित करेंगे।
इस प्रतिबंध से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के लगभग 18 लाख चार पहिया और 44 लाख दोपहिया वाहन प्रभावित होंगे। इनमें दिल्ली के साथ साथ नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद जैसे शहरी केंद्र भी शामिल हैं।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर 18 लाख पुराने वाहनों की जगह 15 लाख रुपये की औसत कीमत वाली नई कारें खरीदी जाती हैं तो ऑटो इंडस्ट्री को 27 लाख करोड़ रुपये का टर्नओवर मिलेगा। केंद्र सरकार को जीएसटी और कंपेंसेशन सेस के रूप में करीब 135000 करोड़ रुपये मिलेंगे जबकि दिल्ली सरकार को रोड टैक्स और डीजल सरचार्ज से 42187 करोड़ रुपये का फायदा होगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार को कुल मिलाकर 177 लाख करोड़ रुपये का फायदा होगा। इस तरह यह नीति दोहरा फायदा देगी। एक तरफ जहां ऑटोमोबाइल सेक्टर को 27 लाख करोड़ रुपये का बूस्ट मिलेगा वहीं केंद्र और दिल्ली सरकार को 177 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। असल आंकड़े इससे 50% ज्यादा होंगे क्योंकि इसमें 44 लाख दोपहिया वाहनों की रिप्लेसमेंट से होने वाली आय को शामिल नहीं किया गया है।
सरकार ने इस कदम को वायु गुणवत्ता में सुधार के लिहाज से जरूरी बताया है। उसने पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (PUC) सर्टिफिकेट सिस्टम पर निर्भर रहने के सुझाव को खारिज कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि यह व्यवस्था पुरानी हो चुकी है और इसमें छेड़छाड़ की गुंजाइश भी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ज्यादातर देशों में उम्र के आधार पर वाहनों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध नहीं लगाया जाता। बल्कि सरकारें सख्त उत्सर्जन मानकों, सड़क योग्यता जांच और आर्थिक निरुत्साहन का मिश्रण इस्तेमाल करती हैं ताकि पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को धीरेधीरे हटाया जा सके।
अमेरिका में कोई फेडरल आयु सीमा नहीं है लेकिन कैलिफोर्निया जैसे कई राज्य सख्त उत्सर्जन जांच (जैसे स्मॉग चेक) लागू करते हैं। यूरोप में भी एकसमान आयु आधारित प्रतिबंध नहीं है लेकिन लंदन, पेरिस और बर्लिन जैसे शहरों में लो इमिशन जोन (LEZ) या अल्ट्रा लो इमिशन जोन (ULEZ) लागू हैं जो पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों पर भारी फीस वसूलते हैं या उन पर प्रतिबंध लगाते हैं। जर्मनी में तीन साल से ज्यादा पुरानी हर कार को हर दो साल में सख्त सड़क योग्यता और उत्सर्जन परीक्षण (TÜV) से गुजरना होता है।
भारत में यह प्रतिबंध ऑटो सेक्टर के लिए फायदेमंद होगा। घरेलू कार बिक्री में जहां जून 2024 में 677% की गिरावट दर्ज की गई है वहीं पूरे साल का ग्रोथ केवल 42% रहने का अनुमान है। ऐसे में यह प्रतिबंध नए वाहनों की मांग को बढ़ाएगा। आयातकों को भी फायदा होगा क्योंकि भारत के हालिया मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) ने आयातित कारों पर शुल्क कम कर दिया है जिससे विदेशी ब्रांड अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं।
लेकिन एमएसएमई, अनौपचारिक परिवहन क्षेत्र और मध्यमवर्गीय परिवारों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। पर्याप्त स्क्रैपेज प्रोत्साहन और एनसीआर से बाहर पुराने वाहनों को ट्रांसफर करने के स्पष्ट विकल्पों के अभाव में मालिकों को इस्तेमाल लायक वाहनों को भी छोड़ना पड़ सकता है। एक बढ़ई या छोटे व्यापारी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 5 लाख रुपये की छोटी डीजल वैन रातोंरात बेकार हो सकती है।
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि अगर भारत गरीबों को बर्बाद किए बिना अपने वाहन बेड़े को आधुनिक बनाना चाहता है तो उसे यूरोप और अमेरिका के सर्वोत्तम तरीकों को अपनाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सख्त और पारदर्शी उत्सर्जन परीक्षण प्रणाली विकसित की जाए और ब्लैंकेट आयु कटऑफ की बजाय ग्रीन जोन को धीरेधीरे लागू किया जाए।
चिंता यह है कि दिल्ली में यह प्रयोग जल्द ही देश के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जा सकता है। इसलिए अधिक न्यायसंगत और विज्ञान आधारित दृष्टिकोण विकसित करना और भी जरूरी हो गया है। अजय श्रीवास्तव ने कहा कि यह बहस अब दिल्ली की सड़कों पर देखने को मिलेगी कि क्या पुराना वाहन मतलब गंदा वाहन है और इसके राष्ट्रीय स्तर पर समानता और पर्यावरण नीति दोनों पर व्यापक प्रभाव पड़ेंगे।