China की Rare Earth Export पॉलिसी से भारतीय ऑटो इंडस्ट्री के लिए मुश्किलें बढ़ीं!

source : Maruti Suzuki, Hyundai
नई दिल्ली: चीन द्वारा Rare Earth Elements (REEs) के निर्यात पर नियंत्रण को और कड़ा किए जाने से भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर पर गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की नई नीति से इलेक्ट्रिक और पारंपरिक दोनों तरह के वाहनों के उत्पादन में रुकावटें आ सकती हैं।
चीन ने अप्रैल 2025 से Rare Earth के निर्यात के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रिया को और लंबा करने का फैसला किया है। इसका कारण राष्ट्रीय सुरक्षा और परमाणु प्रसार रोकथाम बताया गया है। इस कदम से वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
गौरतलब है कि चीन दुनिया का 70% से अधिक Rare Earth Elements का उत्पादन करता है और 90% से अधिक refining क्षमता रखता है। ऐसे में उसके किसी भी फैसले का वैश्विक उद्योगों पर सीधा असर पड़ना तय है।
EVs और Passenger Vehicles पर सबसे ज्यादा असर
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs), पैसेंजर व्हीकल्स (PVs), टू-व्हीलर्स और कॉमर्शियल वाहनों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है। EV मोटर्स में इस्तेमाल होने वाले हाई-परफॉर्मेंस मैग्नेट्स के लिए डिस्प्रोसियम (Dysprosium) और टर्बियम (Terbium) जैसे भारी REEs आवश्यक होते हैं।
ई-टू-व्हीलर्स में उपयोग होने वाले मैग्नेट्स की लागत लगभग ₹150 होती है, जबकि पैसेंजर व्हीकल्स में यह लागत ₹2,000 से ₹24,000 तक पहुंच सकती है। हालांकि कीमत से बड़ा मुद्दा इन सामग्रियों की उपलब्धता है, क्योंकि इनके वैकल्पिक स्रोत सीमित हैं।
डिज़ाइन में बदलाव और प्रोडक्शन पर असर
Emkay Research की रिपोर्ट बताती है कि E-2Ws में कुछ डिज़ाइन बदलाव 2-3 महीने में संभव हैं, जबकि पैसेंजर गाड़ियों और बसों में यह समय 6-12 महीने तक हो सकता है।
Society of Indian Automobile Manufacturers (SIAM) का कहना है कि ICE पैसेंजर वाहनों का प्रोडक्शन जुलाई 2025 से घटाया जा सकता है। वहीं, मौजूदा E-2W स्टॉक भी केवल एक महीने तक चल सकता है अगर वैकल्पिक आपूर्ति व्यवस्था नहीं हुई।
दूसरे देशों की स्थिति
ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया में Rare Earth Elements का अच्छा भंडार है — ब्राज़ील के पास वैश्विक भंडार का लगभग 20% हिस्सा है। हालांकि, चीन ने ब्राज़ील की कई खदानों में हिस्सेदारी ले रखी है। वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों में रिफाइनिंग की सुविधा है, लेकिन कच्चे माल के लिए वे भी चीन पर निर्भर हैं।
चीन की इस नीति से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारी उथल-पुथल की संभावना है। भारत की ऑटो इंडस्ट्री को इस चुनौती का सामना करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश और उत्पादन योजनाओं में बदलाव पर तुरंत ध्यान देना होगा।